14 मई 1948, वो दिन था जब दुनिया भर में यहूदी लोगों ने पहली बार आजादी का जश्न मनाया था। यहूदी समुदाय ने ब्रिटिश से स्वतंत्रता की घोषणा कर दी और इज़रायल को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया। लेकिन ये स्वतंत्रता पड़ोसी देशों को रास नहीं आई और तभी आजादी को अस्वीकारते हुए लगभग पांच देशों की सेनाओं ने नए बने देश इज़रायल पर हमला कर दिया और तभी से अरब- इज़रायल युद्ध की शुरुआत हुई थी।
इज़रायल के बनने के बाद लाखों की संख्या में फ़लिस्तानी नागरिक को अरब- इज़रायल युद्ध के दौरान पलायन करना पड़ा था। अरब देशों के क़रीब छह लाख यहूदी शरणार्थी और विश्व युद्ध के दौरान यूरोप में जीवित बचे ढाई लाख लोग इज़रायल की स्थापना के कुछ सालों में बाद वहां जाकर बसने लगे. इससे इसराइल में यहूदी लोगों की संख्या बढ़ने लगी।
साल 1961 में यहूदीयों के नरसंहार करने वाले एडोल्फ इचमैन को यरूशलम के मुकदमे में पेश होने के दौरान उसे अर्जेंटीना में पकड़ा गया था। जिसके बाद साल 1962 में उसे फांसी दी गई थी। 1967 तक ये लड़ाई इज़रायल के पूर्व का नक्शा बदल कर रख दिया। पड़ोसी देश पड़ोसी देश मिश्र भी कई दफा हमला कर मिटा देने की धमकी दी थी।
कई देशों से संघर्ष करने वाला इज़रायल एक दिन पूर्वी-पश्चिमी यरूशलम, सिनाई प्रायद्वीप, गाजा पर अपना अधिकार बनाया। उसके बाद प्राचीन यरूशलम का वो हिस्सा जिसे यहूदी अपने धार्मिक स्थल के रूप में बेहद पवित्र मानते हैं वेस्टर्न वालॅ पर कब्जा किया।
1976 में कुछ फिलिस्तानी समर्थक ने युगांडा के एक एयरपोर्ट पर कुछ यहूदीयों को बंधक बनाया था। इसमें से ज्यादा इज़रायल के यहूदी थे। बंधक को छुड़ाने के लिए ऑपरेशन चलाया गया था जिसमें कमांडो फोर्स के प्रमुख योनी नेतन्याहू की मौत हो गई थी। ऐसे ही कई बर्षो तक संघर्ष करने के बाद 1993 में अपने मुल्क के रूप में यहूदीयों को इज़रायल मिला।
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