मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले पांच हस्तियों को "भारत रत्न" सम्मान से सम्मानित करने का एलान किया है। ये पांच विभूति ( कपूरी ठाकुर, लालकृष्ण आडवाणी, पीवी नरसिम्हा राव, चौधरी चरण सिंह, डाॅ एमएस स्वामीनाथन ) शामिल हैं। इन पांच में से चार हस्तियां राजनीतिज्ञ हैं , जबकि डाॅ एमएस स्वामीनाथन कृषि वैज्ञानिक रहे हैं। आडवाणी को छोड़कर बाकी विभूतियों को यह सम्मान मरणोपरांत दिये जाएगे। सोचने वाली बात यह है कि आडवाणी को छोड़कर तीन विपरीत विचारधारा और विपक्षी राजनेता रहे हैं।
कपूरी ठाकुर बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री थे, जिनका संबंध पहले कांग्रेस पार्टी बाद में लोक दल और जनता पार्टी से रहा। चौधरी चरण सिंह स्वतंत्रता सेनानी और प्रधानमंत्री रहे हैं। इनका सियासी सफर भी कांग्रेस से ही शुरू हुआ था। लेकिन बाद में कांग्रेस पार्टी से मतभेद होने के कारण अपनी पार्टी बनाई और उत्तर प्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने। पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव भी कांग्रेसी नेता थे और भाजपा के विरोधी भी थे।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिरकार लोकसभा चुनाव से पहले पीएम मोदी ने अलग-अलग विचारधाराओं के लोगों को यह सम्मान क्यों दिया? क्या कोई सियासी संकेत छुपा है? कुछ राजनीतिक सलाहकारों का मानना है कि पीएम मोदी ने 2024 लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए यह कदम उठाया है। इंडियन एक्सप्रेस के छपे लेख में बताया गया "भारत रत्न" देने के पीछे छिपे 5M फार्मूला है जिसका मतलब मंडल, मंडी, मंदिर, मार्केट और मिलेट्स से है।
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