दिल्ली शहर में सरोजनी बाजार बहुत चर्चित है। ये कहानी उसी बाजार की है। जब आप सरोजनी जाओगे तो गेट के अंदर जाते ही रास्ते के दोनो तरफ जो सामान बेचते हैं उसमें कई मासूम बच्चे अपने माता-पिता का सहयोग करते आपको देखने को मिलेगा। उसी रास्ते पर लगभग 8-9 वर्ष की ( बदला हुआ नाम ) ज्योति दिखती है। मासूम सा चेहरा, ठंड की वजह से लाल हो रहा था। नीचे बैठ कर ब्रास्लेट ( जिसे लड़कियां हाथ में पहनती हैं) बैच रही थी। सर उठा कर जोड़ से कहती हैं ज्योति, “दीदी ये खरीद लो”।
मैंने कहा ये तुम बैच रही हो? तुम्हारी मम्मी कहा हैं? तुम अकेले सामान बेच रही हो? हाँ! दीदी में अकेले सामान बेच रही हूं। मेरी मम्मी एक साहब के घर पर काम करती है और मैं यहां सामान बेचती हूं। पापा क्या करते हैं? ज्योति कुछ देर चुप रहने के बाद कहती हैं, पापा नहीं है जब मैं बहुत छोटी थी तो मेरे पापा गुजर गए थे। मेरी एक और छोटी बहन है। वह अभी बहुत छोटी है। तुम पढ़ाई करती हो? हाँ मैं दिन में स्कूल जाती हूं। वहां से आने के बाद मैं सामान बेचने यहां आ जाती हूं। किस क्लास में पढ़ती हो? Three(3) क्लास में पढ़ती हूं। क्या क्या पढ़ाई की हो आज? मैं आज हिन्दी, गणित और इंग्लिश पढ़ी हूं। और पता है ?दीदी! मैं बड़ी होकर पुलिस बनना चाहती हूं। बहुत ही उत्सुकता से ज्योति कहती हैं। मैनें कहा पुलिस ही क्यो बनना चाहती हो? ज्योति हस्ते हुए कहती है एक बार यहां बच्चों को पकड़ने वाला आया था । लेकिन मैं जोड़ से दौड़ते हुए भाग गई थी। फिर थोड़ी देर बाद पुलिस आई। सारे बच्चों को बचाने। तब से मैं सोची हूं। मैं पुलिस ही बनूंगी।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में कितनी भी मुश्किलें क्यों ना आए! हौसला हमेशा बुलंद रखना चाहिए।
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