गोल्फ मैदान में अकेली

अदिति अशोक के लिए गोल्फ और कुछ भी हो, ऊबाऊ नहीं है. हाल ही सोशल मीडिया पर एक इंटरव्यू में दो दशकों के अपने जुनून के बारे में बेहद संजीदगी से बात करती हैं:

“आपको धैर्य रखना होगा. आप कभी दिमाग को उस तरफ जाने नहीं दे सकते कि क्या होने वाला है. एन वक्त पर जब आपको लगता है कि आपने ठीक कीया है, खेल कई बार आपको नीचे पहुंचा देता है”.

हो सकता है वो हाल के हांगझोउ एशियाई खेलों में अपने प्रदर्शन का विश्लेषण कर रही हों, जहां तीसरे दिन करियर के सबसे कम 61 अंक के दौर के बाद वे सोना जीतने के सबसे प्रबल दावेदार थीं लेकिन निर्णायक दिन आखिरी कुछ होल में हार गई। फिर भी वे गोल्फ में पदक जीतने वाली भारतीय महिला बनी। तोक्यो ओलंपिक में प्रेरक प्रदर्शन के बाद अदिति ने खेल में काफी सुधार किया। इस साल उन्होंने दो एलईटी “लेडीज युरोपियन टुअर” खिताब- अंडालूसिया ओपन और केन्या लेडीज ओपेन जीती और एलपीजीए टूर में पाँच बार सिर्स दस में आए।

महज ढाई साल की उम्र में अदिति ने कर्नाटक में गोल्फ एशोसियेशन में पहली बार पुटर पकड़ा. टीवी पर देर रात पीजीए, टूर्नामेंट देखते हुए वो बड़ी हुई। वे कहती हैं, “महिला गोल्फरों के बारे में जानती थी पर उन्हें कभी खेलते नहीं देखा था…ताकि समझ पाती की महिला का खेल पुरूष के खेलों से कैसे अलग होता है”. वो 14 साल की उम्र में वूमेंस इंडियन ओपेन में शीर्ष दस में आई. “तभी मुझे लगा मेरा खेल अच्छा है और मेरी इस खेल में अच्छी संभावना है. 2016 में हीरो वूमेंस इंडियन ओपेन जीतकर वे एलईटी टूर्नामेंट जीतने वाली पहली भारतीय महिला गोल्फर बनीं.

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